उद्धवजी |
Posted: 17 May 2016 01:54 AM PDT एक सवाल पूछता है मुझी में कोई मुझसे तुम कौन हो? मैं क्या हूँ ? मैं तुम और तुम मैं हूँ ? नही तो फिर क्या हूँ ? मैंने कहा जान लेती तो क्यों खोजती इस सवाल का जवाब ? जब छोटी सी थी तुम मेरा बचपन थे बड़ी हुई तुम मेरी युवावस्था थे आज तुम मेरी वृद्धावस्था हो मेरे चेहरे की सलवटे हो जो समय के साथ गहरी होती जाएगी इतनी गहरी कि दूर से देख कर भी पहचान लिए जाओगे चेहरे पर हाथ फेर कर तुम्हे अपने में पा लूंगी तुम संज्ञा हो या आत्मा ? मेरी आँखों में से बाहर झांक कर तुम ही तो देखते हो सब कुछ . सांस बन कर जीवन जारी रखे हो मेरा पर जानते हो अंत में एक दिन मेरे ही साथ जला या दफना दिए जाओगे या ....... किसी मेडिकल कोलेज में पढने के लिए रखे मेरे शरीर के साथ मिलोगे मेडिकल स्टुडेंट्स भी नही ढूढ़ पाएंगे तुम्हे क्योंकि तुम शरीर नही , मेरे शरीर से परे मेरा हिस्सा बन कर रहे हो सदा और शरीर से परे कुछ और भी है ये तो मानती ही नही ये तुम्हारी दुनिया माँ,बाप,भाई ,बहन,बेटा बेटी पति शरीर से, खून से तुम्हारे साथ तो वो रिश्ता भी नही मेरा फिर क्यों ढूढती रहती हूँ तुम्हे मन्दिर,मस्जिद में तीर्थ,कीर्तन में ,किसी प्यारे से चित्र में ? लुकाछिपी बंद करो , और ये जान लो मुझ से परे तुम्हारे अस्तित्व को पहचानेगा भी कौन ? मैं हूँ तो तुम हो. तुम हो तो ही मैं हूँ , और इसका परिणाम तुम्हे भुगतना होगा जब तक जिन्दा हूँ परमात्मा या आत्मा बन कर मेरे संग रहना होगा. |
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